भारत की गौरव मई सभ्यता और संस्कृति में नवरात्रों का विशेष महत्व है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नवीन संवत का प्रारंभ होता है। सत युग का प्रारंभ भी इसी दिन हुआ माना जाता है। तथा ब्रह्मा जी ने सृष्टि का आरंभ भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से किया था ऐसा ब्रह्म पुराण में वर्णित है। इसी कारण इसे स्वयं सिद्ध मुहूर्त माना जाता है। नवरात्रि का शाब्दिक अर्थ है नौ रात्रि, देवी भगवती की उपासना के 9 दिनो का उत्सव है। नौ रातों में देवी के विभिन्न नौ स्वरूपों का पूजन अर्चन होता है। जिसे नव दुर्गा भी कहते हैं ऐसा पुराणों में वर्णित है, की आदिशक्ति ने इन 9 दिनों में सृष्टि की रचना की थी । इन 9 दिनों में किए गए जप तप दान आदि शुभ कार्यों का प्रभाव जीवन भर बना रहता है। चैत्र नवरात्रि को वसंत नवरात्रि भी कहते हैं। इस वर्ष 6 अप्रैल 2019 को नवरात्रों का प्रारंभ होगा । यानी कि 6 अप्रैल को नवरात्रि का प्रथम दिन प्रतिपदा के रूप में मनाया जाएगा। चैत्र प्रतिपदा को गुड़ी पाड़वा का भी महोत्सव होता है। सुबह 9ः35 पर घटस्थापना का मुहूर्त है । शैलपुत्री प्रतिपदा को देवी के शैलपुत्री स्वरूप की का पूजन किया जाता है। शैलपुत्री मां स्वरूप है, जिसमें मां का पहाड़ों की पुत्री के स्वरुप मे पूजन किया जाता है। शैलपुत्री का स्वरूप अति शांत और अति मोहक है। शैलपुत्री स्वरूप में मां गाय पर सवार है दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल पुष्प धारण किए हुए हैं। प्रतिपदा को ध्यान मूलाधार चक्र पर लगाया जाता है और पवित्रता और निर्मलता के आशीर्वाद की की कामना की जाती है। प्रतिपदा के दिन मां को शुद्ध गाय के घी का भोग लगाया जाता है। और ऐसा करने से साधक को रोग कभी भी कष्ट नहीं देते हैं। ब्रह्मचारिणी - नवरात्रि के दूसरे दिन मां के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की का पूजन होता है। ब्रह्मचारिणी मां का वह स्वरूप है जो यह दर्शाता है की मां का वह रूप जो सत चित आनंद ब्रह्म स्वरूप है। और स्वयं आदिशक्ति निरंतर जप और तप में रत हैं, इस स्वरूप में मां अपने श्री चरणों में सीधी खड़ी हैं, और दाएं हाथ में कमंडल और बाएं हाथ में जप की माला लिए हैं। नवरात्रि के दूसरे दिन ध्यान स्वाधिष्ठान चक्र पर लगाया जाता है। तथा शुद्ध इच्छा तप और संयम की प्रार्थना की जाती है। देवी मां को चीनी का भोग लगाया जाता है और तत्पश्चात ज्ञानी ब्राह्मण को दे दिया जाता है। ऐसा करने से दीर्घायु की प्राप्ति होती है। चंद्रघंटा - तृतीया को देवी के चंद्रघंटा स्वरूप की पूजन अर्चन होती है। चंद्रघंटा मां का वह स्वरुप है, जिसमें मां की कांति चंद्रमा के समान उज्जवल और शीतल है। मां ने अपने मस्तक पर चंद्रमा को धारण किया हुआ है, तथा मां का स्वरुप 10 भुजा धारी है। मां चंद्रघंटा दशभुजा में अस्त्र और शस्त्र तथा कमल धारण किए हुए हैं। मां चंद्रघंटा सिंह पर सवार है। तृतीया तिथि को ध्यान मणिपुर चक्र पर केंद्रित किया जाता है। तथा मां से समाधान और संतोष की प्रार्थना की जाती है। भोग मां को दूध का भोग लगाया जाता है। ऐसा करने से दुखों से मुक्ति मिलती है। कुष्मांडा अर्थात चतुर्थी को कुष्मांडा स्वरूप में मां संपूर्ण त्रिविध ताप युक्त संसार को अपने उधर में धारण किये हुए है। मां का यह स्वरूप अति ममतामई है। अपने साधकों को अभय हस्त से सुरक्षा प्रदान किए हुए हैं। मां अष्ट भुजा धारी है । अस्त्र शस्त्र अमृत पूर्ण कलश और सिद्धियों और निधियों से युक्त सिंह पर सवार है । इस दिन मां को मालपुए का भोग लगाया जाता है। और ऐसा माना जाता है कि आशिर्वाद के रूप में आने वाले विघ्नों से हमारी रक्षा होती है। नवरात्रि की पंचमी तिथि को श्री मां के स्कंदमाता स्वरूप का पूजन होता है। अर्थात मां कुमार कार्तिकेय को गोदी में लिए हैं ।और चार भुजा धारी हैं ।पद्मासन में स्थित सिंह पर सवार है ।एक हाथ से कुमार को पकड़े और कमल और वर मुद्रा धारण किए हुए हैं। पंचमी के दिन ध्यान विशुद्धि चक्र पर लगाया जाता है। तथा मां से साक्षी भाव की प्रार्थना की जाती है। स्कंदमाता को केले का भोग लगाया जाता है और ऐसा माना जाता है कि यह भोग लगाने से देवी हमें शुद्ध बुद्धि से आशीर्वादित करती हैं। कात्यायनी - नवरात्रि के छठे दिन आदि शक्ति के कात्यायनी स्वरूप का पूजन होता है। ऋषि कात्यायन के घर कन्या के रूप में जन्म लेने के कारण देवी का का नाम कात्यायनी पड़ा। आदिशक्ति ने महिषासुर के विनाश के लिए कात्यायन ऋषि के घर में जन्म लिया और कात्यायनी रूप से जन कल्याण के लिए और साधकों की रक्षा के लिए कात्यायनी स्वरूप में इस जगत में अवतरण लिया। कात्यायनी स्वरूप में मां सिंह पर सवार है और चार भुजा धारी हैं अभय मुद्रा तलवार, और कमल पुष्प धारण किए हुए हैं। इस दिन ध्यान आज्ञा चक्र पर किया जाता है और अहंकार और प्रति अहंकार के विनाश की प्रार्थना की जाती है। मां को मधु का भोग लगाया जाता है ऐसा करने से आशीर्वाद के रूप में सुंदर और आकर्षक स्वरूप की प्राप्ति होती है। नवरात्रि की सप्तमी को मां के कालरात्रि स्वरूप में पूजन किया जाता है। मां का यह स्वरूप अति रौद्र है। मां कालरात्रि का स्वरूप वह स्वरूप है जिसमें मां काल की भी रात्रि है, जो सब को हरने वाले काल को भी विनाश कर सकती है। अर्थात इस स्वरूप में मां की अतुल्य शक्तियों का पूजन किया जाता है। इस स्वरूप में मां त्रिनेत्र धारिणी है और गधे को वाहन के रूप में स्वीकार किए हुए हैं। मां कालरात्रि को गुड़ का भोग लगाया जाता है और आशीर्वाद के रूप में मां साधक को शोक मुक्त करने का आशीर्वाद देती हैं। महागौरी नवरात्रि की अष्टमी को मां के महागौरी स्वरूप का पूजन होता है। भगवान शिव द्वारा काले रंग का होने के कारण उपास उड़ाए जाने की के कारण मां ने जब घोर तपस्या की और गौर वर्ण को प्राप्त किया तो, मां के इस स्वरूप की पूजन अष्टमी के दिन होता है। मां महागौरी के स्वरूप में मां वृषभ पर अरुण है श्वेत वस्त्र धारण किए हैं, तथा श्वेत ही आभूषण धारण किए हुए हैं। मां चार भुजा धारी हैं अभय मुद्रा, त्रिशूल, डमरू और वर हस्त से साधकों को आशीर्वाद दे रही हैं। इस दिन ध्यान सहस्रार चक्र पर कुंडलिनी पर केंद्रित किया जाता है। और निर्विचारिता का अभ्यास किया जाता है। मां महागौरी को नारियल का भोग लगाया जाता है। और आशीर्वाद के रूप में मां संताप से हमारी रक्षा करती हैं। मां सिद्धिदात्री नवरात्रि के अंतिम दिन मां की सिद्धिदात्री स्वरूप में पुजन किया जाता है। मार्कंडेय पुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण में सिद्धियों का वर्णन है। नौवें दिन के पूजन से मां सिद्धिदात्री स्वरूप में साधकों को सिद्धियों से आशीर्वादित करती हैं। मां चार भुजा धारी और सिंह पर सवार है। अभय हस्त, कमल पुष्प और वर मुद्रा धारण किए हैं। इस दिन मां को चावल से बनी वस्तुओं का भोग लगाया जाता है तथा मां हमारी इस लोक और परलोक में भी हमारी और हमारे परिवार की रक्षा करती हैं। नवरात्रि देवी भक्तों के लिए उत्सव के 9 दिन है संपूर्ण जगत इन नवरात्रि में आशीर्वादओं की वर्षा करता हुआ प्रतीत होता है। मां नवदुर्गा के पावन चरणों मे शत - शत नमन।